الحمدللہ! انگلش میں کتب الستہ سرچ کی سہولت کے ساتھ پیش کر دی گئی ہے۔

 
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
خلافت، بیعت، اطاعت اور امارت کا بیان
ख़िलाफ़त, बैअत, आज्ञाकारी और शासन
954. امارت بری چیز ہے، الا یہ کہ . . .
“ शासन बुरी चीज़ है सिवाए इस के... ”
حدیث نمبر: 1361
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" ليوشك رجل ان يتمنى انه خر من الثريا، ولم يل من امر الناس شيئا".-" ليوشك رجل أن يتمنى أنه خر من الثريا، ولم يل من أمر الناس شيئا".
یزید بن شریک کہتے ہیں کہ ضحاک بن قیس نے اس زیبائش کا کپڑا دے کر مروان کے پاس بھیجا۔ مروان نے چوکیدار سے کہا: دیکھو، دروازے پر کون ہے؟ اس نے کہا: ابوہریرہ رضی اللہ عنہ ہیں۔ اس نے انہیں اندر آنے کی اجازت دی اور کہا: ابوہریرہ! رسول اللہ علیہ وسلم سے سنی ہوئی کوئی حدیث بیان کرو۔ انہوں نے کہا: میں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو فرماتے سنا: عنقریب آدمی یہ تمنا کرے گا کہ اگر وہ ثریا ستارے سے گر پڑے (تو کوئی بات نہیں، لیکن کہیں) ایسا نہ ہو کہ اسے لوگوں کے کسی معاملے کا ذمہ دار بنا دیا جائے۔
यज़ीद बिन शरीक कहते हैं कि ज़हाक बिन क़ेस ने उसे सजा सजाया कपड़ा दे कर मरवान के पास भेजा। मरवान ने चौकीदार से कहा देखो दरवाज़े पर कौन है ? उस ने कहा कि अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्ह हैं। उस ने उन्हें अंदर आने की अनुमति दी और कहा ए अबु हुरैरा रसूल अल्लाह से सुनी हुई कोई हदीस सुनाओ। उन्हों ने कहा मैं ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कहते हुए सुना ! “जल्द आदमी यह इच्छा करेगा कि यदि वह सुरैया सितारे से गिर पड़े (तो कोई बात नहीं लेकिन कहीं) ऐसा न हो कि उसे लोगों के किसी मआमले का ज़िम्मेदार बना दिया जाए।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 361

قال الشيخ الألباني:
- " ليوشك رجل أن يتمنى أنه خر من الثريا، ولم يل من أمر الناس شيئا ".
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‏‏‏‏أخرجه الحاكم (4 / 91) من طريق عاصم بن بهدلة عن يزيد بن شريك أن الضحاك
‏‏‏‏بن قيس بعث معه بكسوة إلى مروان بن الحكم فقال مروان للبواب:
‏‏‏‏أنظر من بالباب؟ قال: أبو هريرة، فأذن له فقال: يا أبا هريرة حدثنا
‏‏‏‏حديثا سمعته من رسول الله صلى الله عليه وسلم ، قال: سمعت رسول الله صلى الله
‏‏‏‏عليه وسلم يقول: فذكره. وقال: " صحيح الإسناد "، ووافقه الذهبي.
‏‏‏‏قلت: وإنما هو حسن فقط للخلاف المعروف في حفظ عاصم هذا، والذهبي نفسه لما
‏‏‏‏ترجمه في " الميزان "، وحكى أقوال الأئمة فيه قال:
‏‏‏‏" قلت: هو حسن الحديث ". ¤


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