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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
فضائل و مناقب اور معائب و نقائص
फ़ज़िलतें, विशेषताएं, कमियां और बुराइयाँ
2136. آپ صلی اللہ علیہ وسلم کی بددعا کا باعث رحمت و تزکیہ ٹھہرنا
“ रसूल अल्लाह ﷺ की बद दुआ भी रहमत और पवित्रता का कारण बनजाती थी ”
حدیث نمبر: 3179
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
-" او ما علمت ما شارطت عليه ربي؟ قلت: اللهم إنما انا بشر فاي المسلمين لعنته او سببته فاجعله له زكاة واجرا".-" أو ما علمت ما شارطت عليه ربي؟ قلت: اللهم إنما أنا بشر فأي المسلمين لعنته أو سببته فاجعله له زكاة وأجرا".
سیدہ عائشہ صدیقہ رضی اللہ عنہا کہتی ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس دو آدمی آئے، انہوں نے آپ سے کوئی بات کی، جسے میں نہ سمجھ سکی، آپ صلی اللہ علیہ وسلم غصے میں آ گئے اور ان پر لعن طعن کیا۔ جب وہ چلے گئے تو میں نے (‏‏‏‏طنزیہ انداز میں) کہا: اے اللہ کے رسول! جو بھلائی ان بیچاروں کو ملی ہے، وہ تو کسی کے حق میں نہیں آئی ہو گی؟ آپ نے پوچھا: وہ کیسے؟، میں نے کہا: آپ نے ان پر لعن طعن اور سب و شتم کیا (‏‏‏‏ یہ ان کی بدبختی ہے)۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: کیا تجھے اس شرط کا علم نہیں، جو میں نے اپنے رب سے لگائی ہے؟ میں نے کہا: اے اللہ! میں بشر ہی ہوں، میں جس مسلمان پر لعن طعن کروں یا اسے گالی گلوچ کروں، تو تو اس چیز کو اس کے حق میں باعث تزکیہ اور باعث اجر بنا دے۔
हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ि अल्लाहु अन्हा कहती हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास दो आदमी आए, उन्हों ने आप से कोई बात की, जिसे मैं न समझ सकी, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ग़ुस्से में आ गए और उन पर लाअनत की। जब वे चले गए तो मैं ने कहा ! ऐ अल्लाह के रसूल, जो भलाई इन बेचारों को मिली है, वह तो किसी को नहीं मिली होगी ? आप ने पूछा ! “वह कैसे ?”, मैं ने कहा ! आप ने उन पर लाअनत की और बुराभला कहा (यह उन की बद-नसीबी है)। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “क्या तुझे इस शर्त का पता नहीं, जो मैं ने अपने रब्ब से लगाई है ? मैं ने कहा ! ऐ अल्लाह, मैं बशर ही हूँ, मैं जिस मुसलमान पर लाअनत करूँ या उसे बुरा भला कहूं, तो तू इस चीज़ को उस के लिए सफ़ाई और सवाब का कारण बनादे।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 83

قال الشيخ الألباني:
- " أو ما علمت ما شارطت عليه ربي؟ قلت: اللهم إنما أنا بشر فأي المسلمين لعنته أو سببته فاجعله له زكاة وأجرا ".
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‏‏‏‏رواه مسلم مع الحديث الذي قبله في باب واحد هو " باب من لعنه النبي صلى الله
‏‏‏‏عليه وسلم أو سبه أو دعا عليه وليس هو أهلا لذلك كان له زكاة وأجرا ورحمة ".
‏‏‏‏ثم ساق فيه من حديث أنس بن مالك قال:
‏‏‏‏__________جزء : 1 /صفحہ : 165__________
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‏‏‏‏" كانت عند أم سليم يتيمة وهي أم أنس، فرأى رسول الله صلى الله عليه وسلم
‏‏‏‏اليتيمة، فقال: آنت هي؟ لقد كبرت لا كبر سنك فرجعت اليتيمة إلى أم سليم تبكي
‏‏‏‏فقالت أم سليم: ما لك يا بنية؟ فقالت الجارية: دعا علي نبي الله صلى الله
‏‏‏‏عليه وسلم أن لا يكبر سني أبدا، أو قالت: قرني، فخرجت أم سليم مستعجله تلوث
‏‏‏‏خمارها حتى لقيت رسول الله صلى الله عليه وسلم فقال لها رسول الله صلى الله
‏‏‏‏عليه وسلم: ما لك يا أم سليم؟ فقالت يا نبي الله، أدعوت على يتيمتي؟ قال:
‏‏‏‏وما ذاك يا أم سليم؟ قالت: زعمت أنك دعوت أن لا يكبر سنها، ولا يكبر قرنها
‏‏‏‏قال: فضحك رسول الله صلى الله عليه وسلم ، ثم قال:
‏‏‏‏" يا أم سليم! أما تعلمين أن شرطي على ربي؟ أني اشترطت على ربي فقلت: إنما
‏‏‏‏أنا بشر أرضى كما يرضى البشر، وأغضب كما يغضب البشر، فأيما أحد دعوت عليه
‏‏‏‏من أمتي بدعوة ليس لها بأهل، أن يجعلها له طهورا وزكاة وقربة يقربه بها منه
‏‏‏‏يوم القيامة ". ¤


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