486- مالك عن وهب بن كيسان عن جابر بن عبد الله انه قال: بعث رسول الله صلى الله عليه وسلم بعثا قبل الساحل وامر عليهم ابا عبيدة بن الجراح وهم ثلاثمائة وانا فيهم، فخرجنا حتى إذا كنا ببعض الطريق فني الزاد، فامر ابو عبيدة بازواد ذلك الجيش فجمع ذلك كله، فكان مزودي تمر؛ قال: فكان يقوتناه كل يوم قليلا قليلا حتى فني ولم تصبنا إلا تمرة تمرة فقلت: وما تغني تمرة؟ فقال: لقد وجدنا فقدها حيث فنيت. قال: ثم انتهينا إلى البحر فإذا حوت مثل الظرب، فاكل منه ذلك الجيش ثمان عشرة ليلة ثم امر ابو عبيدة بضلعين من اضلاعه فنصبا، ثم امر براحلة فرحلت، ثم مرت تحتهما ولم تصبهما.486- مالك عن وهب بن كيسان عن جابر بن عبد الله أنه قال: بعث رسول الله صلى الله عليه وسلم بعثا قبل الساحل وأمر عليهم أبا عبيدة بن الجراح وهم ثلاثمائة وأنا فيهم، فخرجنا حتى إذا كنا ببعض الطريق فني الزاد، فأمر أبو عبيدة بأزواد ذلك الجيش فجمع ذلك كله، فكان مزودي تمر؛ قال: فكان يقوتناه كل يوم قليلا قليلا حتى فني ولم تصبنا إلا تمرة تمرة فقلت: وما تغني تمرة؟ فقال: لقد وجدنا فقدها حيث فنيت. قال: ثم انتهينا إلى البحر فإذا حوت مثل الظرب، فأكل منه ذلك الجيش ثمان عشرة ليلة ثم أمر أبو عبيدة بضلعين من أضلاعه فنصبا، ثم أمر براحلة فرحلت، ثم مرت تحتهما ولم تصبهما.
سیدنا جابر بن عبداللہ (الانصاری رضی اللہ عنہ) سے روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ساحل کی طرف تین سو صحابہ کا ایک دستہ بھیجا اور ان کا امیر سیدنا ابوعبیدہ بن الجراح رضی اللہ عنہ کو بنایا، میں بھی ان میں تھا۔ ہم روانہ ہوئے حتی کہ راستے میں زاد راہ ختم ہو گیا تو ابوعبیدہ رضی اللہ عنہ نے حکم دیا کہ لشکر میں باقی ماندہ خوراک اکٹھی کی جائے۔ پھر یہ ساری خوراک اکٹھی کر لی گئی تو کھجوروں کی دو تھیلیاں ہوئیں۔ اسے ہم بطور خوراک روزانہ تھوڑا تھوڑا استعمال کرتے رہے حتیٰ کہ یہ بھی ختم ہو گئیں اور ہمیں صرف ایک ایک کھجور ملتی تھی۔، (وہب بن کیسان رحمہ اللہ راوی نے) کہا: میں نے پوچھا: ایک کھجور سے کیا ہوتا تھا؟ تو انہوں نے فرمایا: جب یہ بھی ختم ہو گئی تو پھر ہمیں اس کی قدر محسوس ہوئی۔ پھر ہم سمندر کے پاس پہنچے تو ٹیلے کی مانند ایک (بڑی) مچھلی پڑی تھی تو اس لشکر نے اٹھارہ راتیں اس میں سے کھایا۔ پھر سیدنا ابوعبیدہ رضی اللہ عنہ نے حکم دیا کہ اس کی دو پسلیاں کھڑی کی گئیں تو انہوں نے حکم دیا کہ ایک اونٹنی پر کجاوہ رکھا جائے، چنانچہ وہ ان کے نیچے سے گزر گئی اور ان سے لگی نہیں۔
हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह (अल-अंसारी रज़ि अल्लाहु अन्ह) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने साहिल की तरफ़ तीन सौ सहाबा का एक जत्था भेजा और उन का अमीर हज़रत अबु उबैदा बिन अल-जराह रज़ि अल्लाहु अन्ह को बनाया, मैं भी उन में था। हम रवाना हुए हुआ यह कि रास्ते में खाना ख़त्म हो गया तो अबु उबैदा रज़ि अल्लाहु अन्ह ने हुक्म दिया कि फ़ौज में बाक़ी बचा हुआ खाना जमा किया जाए। फिर ये सारा खाना जमा कर लिया गया तो खजूरों की दो थैलियां हुईं। उसे हम खाने के तोर पर रोज़ाना थोड़ा थोड़ा इस्तेमाल करते रहे फिर ये भी ख़त्म हो गईं और हमें केवल एक एक खजूर मिलती थी।, (वहब बिन केसान रहम अल्लाह रावी ने) कहा ! मैं ने पूछा ! एक खजूर से किया होता था ? तो उन्हों ने कहा ! जब ये भी ख़त्म हो गईं तो फिर हमें इस की क़द्र पता चली। फिर हम समुद्र के पास पहुंचे तो टीले की तरह एक (बड़ी) मछली पड़ी थी तो उस फ़ौज ने अट्ठारा (18) रातें उस में से खाया। फिर हज़रत अबु उबैदा रज़ि अल्लाहु अन्ह ने हुक्म दिया कि उस की दो पसलियाँ खड़ी की गईं तो उन्हों ने हुक्म दिया कि एक ऊँटनी पर कजावह रखा जाए, इसलिए वह उन के नीचे से गुज़र गई और उन से लगी नहीं।
تخریج الحدیث: «486- متفق عليه، الموطأ (رواية يحييٰي بن يحييٰي 930/2، 931 ح 1794، ك 49 ب 10 ح 24) التمهيد 11/23، وقال: ”هذا حديث صحيح مجتمع عليٰ صحته“ الاستذكار: 1727، و أخرجه البخاري (2483) ومسلم (1935/21) من حديث مالك به.»
بعثنا النبي ثلاث مائة راكب وأميرنا أبو عبيدة نرصد عيرا لقريش فأصابنا جوع شديد حتى أكلنا الخبط فسمي جيش الخبط وألقى البحر حوتا يقال له العنبر فأكلنا نصف شهر وادهنا بودكه حتى صلحت أجسامنا قال فأخذ أبو عبيدة ضلعا من أضلاعه فنصبه فمر الراكب تحته وكان فينا رجل
بعث رسول الله بعثا قبل الساحل فأمر عليهم أبا عبيدة بن الجراح وهم ثلاث مائة وأنا فيهم فخرجنا حتى إذا كنا ببعض الطريق فني الزاد فأمر أبو عبيدة بأزواد ذلك الجيش فجمع ذلك كله فكان مزودي تمر فكان يقوتنا كل يوم قليلا قليلا حتى فني فلم يكن يصي
ما تغني عنكم تمرة فقال لقد وجدنا فقدها حين فنيت ثم انتهينا إلى البحر فإذا حوت مثل الظرب فأكل منها القوم ثماني عشرة ليلة ثم أمر أبو عبيدة بضلعين من أضلاعه فنصبا ثم أمر براحلة فرحلت ثم مرت تحتهما فلم تصبهما
بعثنا رسول الله ونحن ثلاثمائة راكب وأميرنا أبو عبيدة بن الجراح نرصد عيرا لقريش فأقمنا بالساحل نصف شهر فأصابنا جوع شديد حتى أكلنا الخبط فسمي جيش الخبط فألقى لنا البحر دابة تسمى العنبر فأكلنا منها نصف شهر وادهنا من ودكها حتى ثابت أجسامنا قال فأخذ أبو عبيدة
بعثنا رسول الله ونحن ثلاث مائة نحمل زادنا على رقابنا ففني زادنا حتى إن كان يكون للرجل منا كل يوم تمرة فقيل له يا أبا عبد الله وأين كانت تقع التمرة من الرجل فقال لقد وجدنا فقدها حين فقدناها إذا نحن بحوت قد قذفه البحر فأكلنا منه ثمانية عشر يوما ما أحببنا
بعثنا النبي مع أبي عبيدة في سرية فنفد زادنا فمررنا بحوت قد قذف به البحر فأردنا أن نأكل منه فنهانا أبو عبيدة ثم قال نحن رسل رسول الله وفي سبيل الله كلوا فأكلنا منه أياما فلما قدمنا على رسول الله أخبرناه فقال إن كان بقي معكم شيء فابعثوا به إلينا
هل معكم منه شيء قال فأخرجنا من عينيه كذا وكذا قلة من ودك ونزل في حجاج عينه أربعة نفر وكان مع أبي عبيدة جراب فيه تمر فكان يعطينا القبضة ثم صار إلى التمرة فلما فقدناها وجدنا فقدها
بعثنا رسول الله ونحن ثلاث مائة نحمل أزوادنا على رقابنا ففني أزوادنا حتى كان يكون للرجل منا تمرة فقيل يا أبا عبد الله وأين تقع التمرة من الرجل فقال لقد وجدنا فقدها حين فقدناها إذا نحن بحوت قد قذفه البحر فأكلنا منه ثمانية عشر يوما