الحمدللہ ! قرآن پاک روٹ ورڈ سرچ اور مترادف الفاظ کی سہولت پیش کر دی گئی ہے۔

 
हलाल और नाजाइज़ मामले
1. “ चोर की निंदा ”
2. “ किसी का बिना कारण माल खाना हराम है ”
3. “ तस्वीरें बनाना हराम है ”
4. “ मुतआ का हराम होना ”
5. “ क़िब्ले की तऱफ थूकना हराम है ”
6. “ कुत्ते की क़ीमत हराम है ”
7. “ ज़ानी औरत की ख़र्ची ज्योतिषी की मिठाई हराम है ”
8. “ बिना कारण कुत्ते रखना मना है ”
9. “ बिना ज़रूरत मंगना जाइज़ नहीं ”
10. “ सोने चांदी के बरतनों में खाना पीना मना है ”
11. “ ख़यानत की निंदा ”
12. “ बैर और जलन ( हसद ) करने की निंदा ”
13. “ किसी दुसरे की चीज़ का उपयोग अनुमति के बिना करना मना है ”
14. “ बद गुमानी, जासूसी और चुग़ली की निंदा ”
15. “ फ़ालतू पानी रोके रखना मना है ”
16. “ बालों की विग लगाना हराम है ”
17. “ मुसलमानों के ख़िलाफ़ हथियार उठाना मना है ”

موطا امام مالك رواية ابن القاسم کل احادیث 657 :حدیث نمبر
موطا امام مالك رواية ابن القاسم
حرام و ناجائز امور کا بیان
हलाल और नाजाइज़ मामले
کسی دوسرے کا مال اجازت کے بغیر استعمال کرنا منع ہے
“ किसी दुसरे की चीज़ का उपयोग अनुमति के बिना करना मना है ”
حدیث نمبر: 603
پی ڈی ایف بنائیں مکررات اعراب Hindi
251- وبه: ان رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: ”لا يحلبن احد ماشية احد بغير إذنه ايحب احدكم ان تؤتى مشربته فتكسر خزانته فينتقل طعامه، فإنما تخزن لهم ضروع مواشيهم اطعماتهم، فلا يحلبن احد ماشية احد إلا بإذنه.“251- وبه: أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: ”لا يحلبن أحد ماشية أحد بغير إذنه أيحب أحدكم أن تؤتى مشربته فتكسر خزانته فينتقل طعامه، فإنما تخزن لهم ضروع مواشيهم أطعماتهم، فلا يحلبن أحد ماشية أحد إلا بإذنه.“
اور اسی سند کے ساتھ (سیدنا ابن عمر رضی اللہ عنہما سے) روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تم میں سے کوئی کسی کے دوسرے جانور کا دودھ اس کی اجازت کے بغیر نہ دوھے، کیا تم میں سے کوئی شخص یہ پسند کرتا ہے کہ اس کے کمرے میں آ کر اس کا خزانہ توڑ دے، پھر اس کا کھانا (غلہ) لے کر اپنے پاس منتقل کر لے؟ لوگوں کی خوراک (دودھ) کو ان کے جانوروں کے تھن جمع اور محفوظ رکھتے ہیں، لہٰذا تم میں سے کوئی آدمی دوسرے کی اجازت کے بغیر اس کے جانور کا دودھ نہ دوھے۔

تخریج الحدیث: «251- متفق عليه، الموطأ (رواية يحييٰ بن يحييٰ 971/2 ح 1878، ك 54 ب 6 ح 17) التمهيد 206/14، الاستذكار:1814، أخرجه البخاري (2435) و مسلم (1762/13) من حديث مالك به.»

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